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मंगलवार, 30 मई 2017

"प्राणदायिनी"

वो दूध पिलाती 
माता !
वो गले लगाती 
माता !
कोमल चक्षु में 
अश्रु लेकर 
तुझे बुलाती 
माता !

वो जग दिखलाती 
माता !
तुझको बहलाती 
माता !
तेरे सिर को 
हृदय लगाये 
ब्रह्माण्ड समेटे 
गाथा !

रोती सड़क पे 
माता !
जिसको छोड़ा 
तूने कहकर 
अब तेरा 
भाग्य ! विधाता 

स्मरण नहीं क्या ? तुझको 
आता !
ईश्वर का स्पर्श थी 
माता !
हुआ आज मन 
कलुषित ! तेरा 
कहता, तुझमें 
दरिद्र समाता !

लालचवश है 
बोझ ! बताता 
गृह तेरा संकीर्ण 
हुआ रे !
बूढ़ी माँ को 
व्यर्थ रूलाता !

देख ! तनिक तूं
नयन में उसके 
तीनों लोक है 
माता !
क्यूँ ? करता,फेरे 
मंदिर-मस्ज़िद के 
अनुपम ! ख़ुदा 
बुलाता 

रे ! पापी 
निर्लज्ज तूँ मानव
तुझको कुछ नहीं 
आता !
ईश्वर की,स्वर्ग सी 
भेंट है वो !
जिसको तूँ 
बिसराता 

मुक्ति मार्ग ! की 
इच्छा करता 
मन, वन-वन 
भटकाता 
देख ! वही है 
ज्ञान पुंज,
जिसको देख 
न पाता 

बिन उसके 
दुनियां में कौन ? रोटी 
तुझे खिलाता 
प्राणदायिनी ! जननी वो 
तूँ जिसको, ठुकराता 

हे ! मानव 
तूँ देख ! तनिक 
जीवन, प्राण-पिपासा 
तेरी प्यारी 
माता !   

वो दूध पिलाती 
माता !
वो गले लगाती 
माता !


                          "एकलव्य"                                                    

    

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