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गुरुवार, 9 फ़रवरी 2017

"आ गिरेंगी आत्मा पर"



                                                   

                                                             "आ गिरेंगी आत्मा पर"



आज मन है बोलता
दिल के चौखट खोलता
जो छिपी ,पर्दे में लिपटी
अनछुए जख्म ,कुरेदता ,

दर्द होता है जो छू लूँ
अनदिखे से मर्म कई
सन्नाटों में पसरी चीखें
सुनता नहीं क्यूँ बोल ना ,

याद है वो रातें  काली
काली रातें थीं कभी
आज जो रौशन हुआ है
कल वही सूनी  पड़ीं  ,

जानता मैं ख़ुश हूँ केवल
क्षण भर दिखाने के लिए
फ़िर वहीं गहराईयाँ
धुँधली सी परछाइयाँ
बीते गमों की स्याहियाँ ,

आ गिरेंगी आत्मा पर
थोड़ा डराने के लिए.........



         "एकलव्य"
                                         

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

Nice one . Good way of presentation .